रहस्यमाई चश्मा भाग - 28
जब हद कर दी नत्थू एव उसके आदमियों ने जेठ की भयंकर गर्मी संध्या का समय नत्थू ने अपने आदमियों को शुभा की झोपड़ी फूंकने के लिए योजना बनाकर भेजा ज्यो ही नत्थू अपने आदमियों के साथ मंदिर के पास शुभा कि झोपड़ी के पास पहुंचा और लुकार शुभा कि झोपडी पर फेकने ही वाले थे कि शुभा कि झोपड़ी से विषधर निकला और नत्थू एव उसके आदमियों को दौड़ाने लगा किसी तरह से जान बचाकर भागे सभी उस कार्य मे चुरामन भी सम्मिलित था ।
श्यामचरण जी एव मंगलम चौधरी का राम भरत मिलाप देखकर उसका पेट भुला जा रहा था कि कब वह खाली हो और आंखों देखा हाल वर्णन करे और नत्थू को किसी अनजाने खतरे से सजग करे चुरामन सोच में डूबा ही था और मंगलम चौधरी एव श्यामाचरण जी के मिलन को देख वहां उपस्थित सभी लोग स्तब्ध थे तभी टेशू रसोई से बाहर निकला और बोला मॉलिक रसोई तैयार है और कहार लोग भोजन को लेकर मंदिर शुभा कि झोपड़ी की तरफ जाने को तैयार है क्योंकि आपने जिन आदमियों को शुभा कि झोपड़ी को दुरुस्त करने के लिए भेजा था सभी आ चुके है और बता रहे है कि शुभा बिटिया कि झोपड़ी इस लायक हो चुकी है कि वहाँ भोजन किया जा सकता है झोपड़ी की लिपाई भी कर दी गयी है जहां भोजन करना है,,,,,,,
आप लोंगो को आप लोग चलिये रसोइए टेशू के आदेश को सुन कर श्यामाचरण जी बोले चलिये चौधरी साहब मंगलम चौधरी श्यामाचरण जी मेहुल कुमार मन्नू मिया सुयश टेशू चुरामन एव कुछ और गांव के लोग साथ साथ चल दिये सभी पैदल ही चल रहे थे रास्ते मे श्यामाचरण जी अपने गांव की कोई भी खास या विशेष पहचान होती रुक कर मंगलम चौधरी को बताते सब एक साथ ही आगे पीछे चल रहे थे तभी एकाएक एक पुरानी हवेली के सामने श्यामाचरण जी रुके और मंगलम चौधरी को बताया कि यह हवेली यशोवर्धन परिवार की है,,,,,,,
मंगलम चौधरी ने मन ही मन उस हवेली को श्रद्धा के साथ नमन किया और बोले श्यामाचरण जी यह हवेली जीर्ण सिर्ण एव वीरान क्यो पड़ी है श्यामाचरण जी ने बताया कि यशोवर्धन पूर्वी पाकिस्तान चले गए थे और वहाँ पर बहुत बड़ा करो बार बढ़ा लिया उनके पास भी सुनने में आया कि मीले आदि थी लेकिन भारत की स्वतंत्रता के समय धार्मिक उन्माद के दंगे में यशोवर्धन का पूरा परिवार मारा गया इस घटना से पहले ही यशोवर्धन के माता पिता के मृत्यु के बाद ही गांव के ही एक लफंगे नत्थू ने उनकी हवेली में डांका डाला और उनके मृत्यु के बाद उनकी पुश्तेनी खेती पर फर्जी दस्तावेजों के बिना पर दावा कर रखा है सरकारी मेहकमे में अभी कुछ खुद्दार निष्ठावान अधिकारी कर्मचारी है जिन्होंने यशोवर्धन कि पैतृक संपत्ति को जब्त कर नियंत्रण में रख बीस वर्ष का समय निर्धारित किया था,,,,,,
जो आब कुछ ही दिनों में पूरा होने वाला है बातों के शिलशिला चलता रहा कब सभी शुभा कि झोपड़ी जो मंदिर परिसर में ही था पहुच गए पता ही नही चला सबके आसन लगे हुए थे और कहार पानी लेकर हाथ पैर धोने के लिए खड़े थे हाथ पैर थोने के बाद सभी लोग अपने अपने आसन पर विराजे और भोजन परोसा गया भोजन शुरू हुआ मंगलम चौधरी भोजन करते ख्यालों में डूब गए जव शुभा उनको स्वंय भोजन कराती थी तब पूछती रहती थी भोजन स्वादिष्ट है कि कोई कमी है आप तो खाते ही नही मैं ही हूँ जो जबरजस्ती कुछ खिला देती हूँ नही तो आपका बस चले तो आप भाग दौड़ के चक्कर मे भोजन ही छोड़ दे एकाएक मंगलम चौधरी बोल उठे भोजन बहुत स्वादिष्ट बना है कोई कमी नही है श्यामाचरण जी बोले मंगलम चौधरी साहब आपसे किसने पूछा कि भोजन अच्छा बना है कि नही क्योकि मैं जनता हूँ कि टेशू के भोजन में कभी कुछ पूछने कि आवश्यकता ही नही रहती है तो आप बता किसे रहे है चौधरी साहब जैसे झेंपकर बोले नही श्यामचरण जी मुझे लगा कि इतने परिश्रम से भोजन बनाने वाले की प्रशंशा किया जाना चाहिए भोजन समाप्त हुआ!!!!
भोजन के बाद मंगलम चौधरी ने पुजारी तीरथ राज जी से सवाल किया जब सिंद्धान्त आये थे सुयश की माँ शुभा को ले जाने के लिए तब क्या वह इस झोपड़ी और मंदिर आये थे पुजारी तीरथ राज जी बोले नही चौधरी साहब मैंने सुना अवश्य था कि कोई आदमी शुभा बिटिया को खोजते आया था जिसकी मुलाकात सुरहु पहलवान से हुई थी सुरहु ने उन्हें श्यामाचरण जी के यहां पहुंचा दिया और श्यामचरण जी ने मानवता के आधार पर जो सहयोग शुभा को पता लगाने में कर सकते थे किया दस पंद्रह दिनों तक गांव गांव चक्कर काटने के बाद वो लौट गए उसके बाद आप आए है उन्होंने सुयश के दुर्घटना के विषय मे कुछ नही बताया था।
भोजन के उपरांत कुछ देर विश्राम करने के उपरांत मंगलम चौधरी से शुभा कि तलाश कि सही दिशा के लिए सहयोग मांगा श्यामाचरण जी ने मंगलम चौधरी को बताया कि सुयश के साक्षात्कार हेतु जाने के बाद शुभा उसके लौटने की प्रतीक्षा करती रही संध्या फिर निशा पुनः नई सुबह तक जब सुयश नही लौटा तब वह सुरहु पहलवान के पास गई और उसने बेटे सुयश कि जानकारी चाही सुरहु ने मात्र सुयश को रेलवे स्टेशन छोड़ने की बात ही बताई,,,,,
उसके उपरांत वह गांव के प्रत्येक उस घर पता लगा कर गयी जिसके घर का कोई भी व्यक्ति बाज़ार हाट या रेलवे स्टेशन गया हो शायद वह इस उम्मीद से ऐसा कर रही थी कि किसी ने उसके बेटे को देखा हो और कुछ बता दे वह पूरे दिन गांव में इस दरवाजे उस दरवाजे मारी मारी फिरती रही गांव के शरारती तत्व उसकी इस विवशता में पैशाचिक आचरण कि बात सोचते और कोशिश करते क्योकि इस गांव में जब से नत्थू ने रहना शुरू किया है
जारी है
kashish
09-Sep-2023 08:05 AM
Awesome part
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RISHITA
02-Sep-2023 09:29 AM
Beautiful
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madhura
01-Sep-2023 10:35 AM
Nice one
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